Namaz e Janaza Ka Tarika
Namaz e Janaza Ka Tarika जनाजे की नमाज फर्ज किफाया है एक ने भी पढ़ ली तो सब बरी हो जाएंगे वरना जिस जिस को खबर पहुंची थी और ना पढ़ा तो गुनहगार होगा और जो इसकी फरजियत का इनकार करेगा वह काफ़िर होगा।
इसके लिए जमात शर्त नहीं एक आदमी भी पढ़ ले तो फर्ज अदा हो जाएगा
नमाजे जनाजा के लिए जमात शर्त नहीं हैं दुआएं सुन्नत है शर्त या फिर वह वाजिब नहीं अलबत्ता नमाजे जनाजा के लिए बा वजू होना शर्त है और नमाजे जनाजा की नियत से मय्यत को किबले के सामने रखकर 4 मर्तबा अल्लाह हू अकबर कह देने से नमाजे जनाजा अदा हो जाती है यानी फर्ज किफाया अदा हो जाता है इस नमाज में यानी खड़ा होना और 4 तकबीरें ही फर्ज है और जो दुआएं पढ़ी जाती हैं उनका पढ़ना सुन्नत है इसके बगैर भी फर्ज की अदायगी हो जाती है।
Namaz e Janaza padhne Ka Tarika
नमाज जनाजा पढ़ने के तरीका यही है कि पहली तकबीर के सना तक और दूसरी तकबीर के बाद दरूद शरीफ होते हैं और तीसरी तकबीर के बाद मैयत के लिए दुआ ए मगफिरत करते हैं और चौथी मर्तबा तकबीर के बाद सलाम फिर देते हैं
Namaz e Janaza Ka Tarika यह है कि नमाज जनाजा की नियत कर के कानों तक हाथ उठाकर अल्लाह ऊपर कहता हुआ हाथ नीचे लाए और नाफ़ के नीचे बांध ले और फिर सना पढ़े।
सुभ हानका अल्ला हुम्मा वा बिहमदिका वताबा रकासमुका वजल्ला सना उका वला इलाहा गयरुक
Subhanaka allahumma wa bihamdika wata baraksmuka wata aala jadduka wa jalla sanauka walailaha gayruk
फिर बिना हाथ को उठाए अल्लाह हू अकबर कहें और दरूद शरीफ पढ़े बेहतर है वही दरूद है जो नमाज में पढ़ा जाता है अगर कोई दूसरा दरूद पढ़ा तब भी कोई हर्ज नहीं फिर अल्लाह हू अकबर कहकर अपने और मय्यत के लिए और तमाम मोमिनीन और मोमीनात लिए यह दुआ पढ़े।
अगर बालिग मर्द या औरत का जनाजा हो तो तीसरी तकबीर के बाद यह दुआ पढ़े
तर्जुमा :- अल्लाह हमारे जिंदो को और हमारे मर्दो को और हमारे हजूर को और हमारे गायब को हमारे छोटों को और हमारे बड़ों को और हमारे मर्दो को हमारी औरतों को बख्श दे अल्लाह हम में से जो जिसे जिंदा रखे तो उसे इस्लाम पर जिंदा रख और हम में से तू जिसे मौत दे तो उसे ईमान पर मौत दे
अगर मय्यत नाबालिग लड़के की हो तो ये दुआ पढ़े
NaBalig Ladke ki Dua e Janaza
अल्लाहुम्मा ज अल्हु लना फरतौं वज अल्हू लना अजरौं वा जुखरौं वजअलहू लना शाफिऔं वा मुशफ़्फ़ाआ।
तर्जुमा :- ऐ अल्लाह!तू इस बच्चे को हमारे लिए पहले से जाकर इंतिजाम करने वाला बना,और उसके हमारे लिए अजर और ज़ख़ीरा और शिफारिश करने वाला और शिफारिश मंज़ूर करने वाला बना दे
अगर मय्यत नाबालिग लड़की की हो तो यह दुआ पढ़े
NaBalig Ladki ki Dua e Janaza
अल्लाहुम्मा ज अल्हा लना फरतौं वज अल्हा लना अजरौं वा जुखरौं वजअलहा लना शाफिअतौं वा मुशफ़्फ़ा आ।
तर्जुमा :- ऐ अल्लाह! तू उस बच्ची को हमारे लिए पहले से जाकर इतिजाम करने वाली बना और उसको हमारे लिए अजर और ज़ख़ीरा और शिफारिश करने वाली और शिफारिश मंज़ूर की हुए बना।
सोचने की ज़रूरत है कि सिर्फ पांच से छः लाइन में पूरी Namaz e Janaza Ka Tarika मुकम्मल हो जाता है| सना और दरूद शरीफ तो सबको याद ही होता है बस दुआ को जबानी याद करें और अपने बच्चों को भी याद कराएं।
किन लोगों की नमाजे जनाजा ना पढ़ी जाए
हर मुसलमान की नमाज जनाजा पढ़ी जाए चाहे वो कैसा ही गुनाहगार क्यों ना ही लेकिन जो बागी हो ईमाम ए बरहक के खिलाफ लड़ने को निकले और इसी बगावत की हालत ने मारा जाए, वह डाकू जो डकैती करते हुए मारा जाए ना इन को गुसल दिया जाए और ना इन की नमाज जनाजा पढ़ी जाए जिस ने कई आदमी का गला घोट कर मार डाला हो उसकी भी नमाजे जनाजा ना पढ़ी जाए और वो आदमी जिसने अपने मां बाप को मार डाला हो उसकी भी नमाज जनाजा नहीं पड़नी चाहिए।
नमाज जनाजा कौन पढ़ा सकता है
नमाजे जनाजा पढ़ाने का हक बादशाह ए इस्लाम को है उसके बाद शहर काजी को फिर इमामे जुमा को उसके बाद मोहल्ले की मस्जिद के इमाम को या फिर वली को वली से मुराद मैयत के घरवाले ता करीबी रश्तेदारों में से कोई अगर बेटा आलिम ए दीन है या हाफिज है तो बेटा जनाजा पढ़ाएगा बच्चों को नमाजे जनाजा की विलायत नहीं
नमाजे जनाजा की सफ़ कैसी होनी चाहिए
बेहतर यह की नमाज जनाजा में तीन सफ करें जैसा कि हदीस में है कि जिस की नमाज तीन सफ़ के लोगों ने पढ़ी उसकी मगफिरत हो जाएगी, अगर लोगों कि तादाद ज़्यादा है तो 5 या 7 सफ़ भी बना सकते हैं इमाम को मैयत के सीने के सामने इमाम को खड़ा होना चाहिए।
क्या मस्जिद में नमाज जनाजा जायज है
मस्जिद में नमाज जनाजा मकरूह ए तहरीमी है मय्यत चाहे मस्जिद के अंदर हो या बाहर अगर जुम्मे के दिन कोई में गया तो अगर जुम्मे से पहले तदफीन हो सके तो पहले ही कर ले इस खयाल से रोके रखना की जुमे के बाद ज्यादा लोग आएंगे यह मकरूह हैं
अगर मय्यत को बगैर नमाज़ पढ़े दफन कर दिया और मिट्टी भी दे दी तो अब उसकी कब्र पर नमाज़ पढ़े जब तक फटने का गुमान ना हो और अगर मिट्टी ना दी गई है तो मय्यत को बाहर निकालें और नमाज पढ़कर दफन करें।