Nafil Namazon Ki Ahmiyat

Nafil Namazon Ki Ahmiyat

अस्सलामु अलैकुम, आज के इस टॉपिक में हम Nafil Namazon Ki Ahmiyat के बारे में जानेंगे ,आजकल लोगों का रुझान नाफ़िल ईबादात की तरफ से बिलकुल हट ता हुआ नजर आता है, मस्जिदों में इमाम साहब के नमाज़ मुकम्मल करते ही लोग उठ कर चले जाते हैं और सुन्नत और नफिल नमाज को छोड़ देते हैं। जबकि लोग नफिल इबादत की फजीलत से नवाकिफ हैं।

इंसान के आमाल के में सबसे नेक अमल नमाज है जो अल्लाह को बहुत पसंद है अल्लाह ताला नमाज को बहुत पसंद था फरमाता है बल्कि इंसान की सबसे ज्यादा पसंदीदा चीज़ सजदा है जब वह अपने रब के सामने अपने तमाम गुनाहों का इजहार करता हुआ अल्लाह के सामने सजदा करता है और अल्लाह की रहमत का तालिब होता है अल्लाह की रहमत को मांगता है ऐसी नमाज उसकी बहुत बड़ी नेकी है और वह नमाज बहुत बड़ा दर्जा भी रखती है, इस तरह की नमाज़ अल्लाह ताला के यहां काबिल है कुबूल है और इसी तरह की नमाज से आदमी के गुनाह बख्श दिए जाते हैं मगर यह गुनाह सिर्फ गुना है सगीरा के लिए हैं क्योंकि गुनाह ए कबीरा जैसे किसी यतीम का हक मार लेना, झूठी कसम खाना, वालदेन की नाफरमानी करना, बद कारी करना, और भी बहुत गुनाह हैं जो गुनाह कबीरा है

गुनाहे कबीरा अल्लाह की बारगाह में तौबा अस्तगफार के बगैर माफ नहीं होते अगर खुदा ना खस्ता शैतान के वास्वसे की वजह से यानी शैतान की बहकावे की वजह से किसी ने गुनाहे कबीरा कर लिया यानी बड़ा गुनाह कर लिया या उससे वह गुना हो जाए तो उसको चाहिए कि तौबा अस्तगफार करके अल्लाह रब्बुल इज्जत को राजी करने में देर नहीं करनी चाहिए नहीं तो मौत का कोई वक्त मुकर्रर नहीं अगर हालत ए गुनाह में जिंदगी खत्म हो गई और इंसान दुनिया से चला गया तो अजाबे कब्र और अजाबे जहन्नम उसको मिलेगा ही मिलेगा जिससे हर शख्स पनाह मांगता है ऐसे अजाब से।

अल्लाह ताला ने अपने बंदों के लिए जो चीजें फर्ज की हैं इन फरा इसकी अदायगी को अल्लाह ताला बहुत पसंद फरमाता है और इन बंधुओं को खास लोगों की सफ में जगह देता है।जो Nafil Namazon Ki Ahmiyat  को समझता है |

Faraiz इसके साथ-साथ Nafil Namazon का और Nafil इबादत का  करने वालों को अल्लाह ताला अपने महबूब बंदों में शामिल कर लेता है सूरह मुजम्मिल ने इरशाद है

अपने रब का नाम याद करो और उसकी तरफ यक्सू हो जा” (यानी पूरा कंसंट्रेशन अपने रब की तरफ कर लो।)

हर तरफ से ताल्लुक तोड़ने का मतलब अपने आप को अलग कर लेना यानी दुनिया की और तमाम चीजों से अपने आपको अलग कर लेना

ताल्लुक तोड़ने का मतलब है कि अल्लाह की इबादत और उससे दुआओं मुनाजात के लिए उसकी तरफ ध्यान खींचना होता है।

मजहब इस्लाम दुनिया के तमाम काम को छोड़कर अल्लाह की इबादत का मुतालबा नहीं करता बल्कि अपना दुनियावी काम को अदा करने के साथ-साथ अल्लाह की इबादत भी पूरे मन के साथ करना क्योंकि रहबा नियत इस्लाम में ना पसंदीदा है यानी सन्यास लेना इस्लाम में ना पसंदीदा है दुनियावी काम काज जैसे लेनदेन, खरीद फरोख्त, बिजनेस, सियासत, घरवालों का कामकाज, लोगों के साथ मिलना जुलना, इन सब काम को इस तरह से किया जाए कि अल्लाह की याद से गाफिल ना हो इबादत के साथ-साथ नफिल नमाज़ों और नफ़िल इबादात करना एक मोमिन बन्दे के दरजात को उसके लेवल को ऊपर ले जाने का जरिया बनता है और इसका शुमार अल्लाह के महबूब बंदों में होता है।

हुजूर अकरम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने फरमाया कि “वह लोग जो सुबह की नमाज में जमात के साथ शरीक होते हैं और सूरज निकलने तक उसी जगह बैठे रहते हैं यह लोग बहुत थोड़े से वक्त में बहुत ज्यादा दौलत कमाने वाले हैं”

सूरज निकलने के बाद जब मकरूह वक्त जो तकरीबन 20 मिनट का होता है निकल जाए तो 2 रकात इशराक की नमाज़ पढ़े इस नफ़िल नमाज़ की बहुत सी फजीलत आयि है।

Chasht Ki Namaz Ki Fazilat

Chasht Ki Namaz जिस्म के तमाम जोड़ों की तरफ से एक सदका का जरिया है यानी अल्लाह ताला ने पूरे जिस्म में 360 जोड़ों की तादाद पैदा फरमायी है अगर इंसान सुबह उठकर अपने तमाम जोड़ को सही हालत में पता है तो ए अल्लाह रब्बुल इज्जत का बहुत बड़ा एहसान है जिस का शुक्र अदा करना चाहिए।

हजरत आयशा रजि अल्लाह ताला अनु मासी रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो वाले वसल्लम Chasht Ki Namaz 4 रकात पढ़ा करते थे और जितनी अल्लाह चाहता ज्यादा भी अदा कर लेते थे (मुस्लिम शरीफ)

Chasht Ki Namaz दो चार या 8 रकात पढ़ी जा सकती है उस वक्त सल्ला वाले वसल्लम से ऐसा करना साबित है

Chasht Ki Namaz Ke Fayde

हजरत शफीक बलजी रहमतुल्लाह आले मशहूर सूफी और बुजुर्ग हैं और फरमाते हैं कि हमने 5 चीजें तलाश कि उनको पांच जगह पाया जिसमें रोजी की बरकत Chasht Ki Namaz में मिली जब सूरज फेल कर आसमान के चौथा हिस्से तक हो जाए और वक्त Chasht का हो जाए जिस वक्त इंसान अपनी ज़रूरियात से फारिग होकर अपने कारोबार में लगता है अगर वह अपना काम शुरू करने से पहले Chasht Ki Namaz अदा कर लेता है और उसकी नियत सिर्फ और सिर्फ इजहार बंदगी और अल्लाह की खुशी हासिल करना होता है तो इसमें कोई शक नहीं कि उसके काम में बरकत होती है अल्लाह उसके करोबार को और तरक्की देता है फराइज़ के साथ-साथ नाफिलों का एहतमाम करना अल्लाह के करीब होने का जरिया है।

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Awwabeen Ki Namaz(salatul awwabeen)

मगरिब की नमाज के फौरन बाद अ व्वाबीन की नमाज का वक्त शुरू हो जाता है Awwabeen Ki Namaz ka tarika इस तरह है इसमें 6 रकात नफिल नमाज 3 सलाम के साथ पढ़ी जाती है।इस नमाज़ को भी और दूसरी नमाजों की तरह पढ़ी जाती है। ओलामा ने इस नमाज की बहुत बड़ी फजीलत बयान की है।

हम गुनाहगारों के लिए यह बड़ी बात है कि इन्हीं अच्छे अमल की वजह से हमारे आमाल नामें मै  nekiyon  का इजाफा हो जाता है और बदी कम कर दी जाती है इसके अलावा क़यामत के दिन अमाल के तराजू पर नमाज ही सबसे ज्यादा वज़न रखने वाला अमल होगा।

Tahajjud Ki Namaz ( Qayamil-Lail )

Tahajjud Ki Namaz को अहले इमान की एक खास क्वालिटी बताया गया है इस वक्त इंसान जो कि अपनी नींद से जाग कर अपना ऐसो आराम को छोड़कर अल्लाह की याद में अपने मन को लगाता है,और इत्मीनान और सुकून के साथ नमाज अदा करता है सारी नफिल नमाजओं में इस नमाज की फजीलत सबसे ज्यादा है , क्योंकि इस नमाज का बेहतर वक्त रात का पिछला हिस्सा होता है।जिस वक्त लोग अपने गरम बिस्तर पर आराम से सो रहे होते हैं।

नबी अकरम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम का यही माहौल था यही उनका डेली का रूटीन था कि और रात के पहले हिस्से में सोते और पिछले हिस्से में उठकर तहज्जुद की नमाज अदा करते थे

एक हदीस में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने इरशाद फरमाया

ऐ लोगों! सलाम को फैलाओ, खाना खिलाओ, और रात को नमाज पढ़ो, जबकि लोग सोए हुए हो इस तरह तुम जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओगे”

जन्नत में सलामती के साथ दाखिल होने का मतलब है कि अल्लाह ताला ऐसे लोगों को अपने फज़लों करम से जहन्नम की सजा भुगते बगैर सलामती से जन्नत में दाखिल फरमाएगा।

हजरत जाबिर रजि० बयान करते हैं कि मैंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो वाले वसल्लम को फरमाते हुए सुना “रात में एक घड़ी है जिस मुसलमान शख्स को वह घड़ी मयस्सर हो जाए और कोई शख़्स उस वक्त उसमें दुनिया और आखिरत के मामले में किसी भी भलाई का सवाल करेगा तो अल्लाह ताला उसे जरूर अता फरमाएगा और यह वक्त हर रात को होता है”

हदीस में आया है कि जब रात का आखरी तिहाई हिस्सा बाकी रह जाता है तो अल्लाह ताला आसमांने अव्वल पर नुजूल फरमाता है और आवाज लगाता है कोई तौबा करने वाला है जिसको मैं बख्श दूं कोई मांगने वाला है जिसके सवाल को मैं पूरा कर दूं यहां तक की फज्र का वक़्त हो जाता है।

नबी अकरम सल्लल्लाहो वसल्लम का इरशाद है कि रोजे महशर में आदमी के अमल में सबसे पहले फर्ज नमाज़ का हिसाब किताब किया जाएगा अगर नमाज अच्छी निकल आई तो वह शख्स कामयाब होगा, और अगर नमाज बेकार साबित हुई तो वह शख्स घाटे में होगा,अगर कुछ नमाज में कमी पाई गई तो इरशाद ए खुदा वंदी होगा कि देखो इस बंदे के पास कुछ नफिले भी हैं जिनसे faraiz पूरा कर दिया जाए अगर नफिल नमाज निकल आई तो उनमें से फर्जो को पूरा कर दिया जाएगा उसके बाद इसी तरह बाक़ी आमाल जैसे रोजा, जकात, वगैरा का हिसाब किताब होगा।

Conclusion

ऊपर की हदीस से मालूम होता है कि फराइज की पाबंदी अल्लाह ताला का पसंदीदा काम है और कुछ अल्लाह के खास बंदे जो faraiz के साथ साथ नफिलों को भी अदा करते हैं और मन के साथ करते हैं अल्लाह उनको अपनी रहमत में ढक लेता है।

अल्लाह हम सबको नफिल नमाज की पाबंदी करने की तौफीक़ अता फरमाए।

तो आज इस टॉपिक Nafil Namazon Ki Ahmiyat पर हमने जाना की नफिल नमाज़ की अहमियत अगर आपको यह टॉपिक अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर शेयर करें ताकि नफिल नमजों से रिलेटेड हमारे मन में आये हुए सवाल क्लियर हो सके।

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