Zakat kya hai
जकात इस्लाम का एक अहम रुकना है और फरीजा है अमीरों के माल में से उसका कुछ हिस्सा गरीबों में तक्सीम किया जाता है ताकि दुनिया में लोग बराबर हो सके और उसमें से लोगों का गरीबी खत्म हो जाए और मालदार और गरीबों के दरमियान मोहब्बत पैदा होती है और ताल्लुकात मजबूत होते हैं|Zakat kya hai। Zakat kisko dena chahiye |
Kin logon per farz hoti hai
जिन लोगों के अंदर नीचे दी गई बातें पाई जाती हैं उन लोगों के ऊपर जकात फर्ज होती हैं
- मुसलमान मुसलमान होना काफिर के ऊपर जकात फर्ज नहीं है चाहे पहले से काफी हो या मुर्तद हो गया हो
- आजाद होना गुलाम के माल पर सरकार फर्ज नहीं है जो आदमी आजाद है उसके ऊपर जकात फर्ज है जो गुलाम है उसके ऊपर रकात फर्ज नहीं हैं
वाले हो होना यानी जो बच्चे बालिक हो गए हैं उनके ऊपर जकात फर्ज है जो बच्चे नाबालिग हैं उनके माल पर जकात फर्ज नहीं है
- अक्ल होना यानी अक्ल दार होना किसी पागल के माल पर जकात फर्ज नहीं है
- माल का मालिक हो लेकिन अभी वह दूसरे के कब्जे में हो तो ऐसे माल पर सका तरस नहीं है जैसे औरत का मेहर मेहर पर कब्जा करने से पहले औरतों पर जकात फर्ज नहीं
- माल निसाब तक पहुंचना जो माल निसाब तक नहीं पहुंचा उस पर जकात फर्ज नहीं साडे सात तोला सोना और साडे 52 तोला चांदी अगर इस निसाब को माल नहीं पहुंच रहा है तो जकात फर्ज नहीं है।
माल जरूरत से ज्यादा हो रहने के घर, पहने जाने वाले कपड़े, घरों के सामान ,सवारी के जानवर ,और इस्तेमाल करने वाले हथियारों पर जकात फर्ज नहीं है
इसी तरह इन चीजों पर ज़कात फर्ज नहीं है जो कारखाने वगैरह में इस्तेमाल किए जाते हैं क्योंकि यह तमाम चीजें असली जरूरतों में दाखिल है
- कर्जदार ना होना अगर किसी पर कर्ज हो और कर्ज निकालने पर निसाब पूरा नहीं होता है तो उस आदमी पर जकात फर्ज नहीं है।
ऐसा माल जिस पर माल बढ़ता हो जैसे जानवर, सोना चांदी, वगैरह चाहे जेवरात की शक्ल में हो या बर्तन की शक्ल में हो इस पर जकात फर्ज है
जवाहरात पर जकात फर्ज नहीं है मसलन मोती याकूत वगैरा अगर तिजारत के लिए ना हो तब ।
Zakat kab farz hoti hai
जकात फर्ज होने के लिए पहले तो निसाब पूरा होना चाहिए और दूसरा 1 साल गुजर जाना चाहिए।अगर शुरू साल में निसाब का मालिक हो और उस साल के दौरान माल निसाब से कम हो जाए फिर साल के आखिर में निसाब का मालिक हो जाए तो भी ज़कात फर्ज हो जाएगी।
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Zakat kab ada ki jaati hai
फकीर को जकात का माल देते वक्त या जकात के मुस्तहक लोगों में तक्सीम करते वक्त या किसी वकील को हवाले करते वक्त जकात की नियत करना जरूरी है वरना जकात अदा नहीं हो।
जकात अदा होने के लिए लिए शर्त नहीं कि फकीर को मालूम हो कि यह जकात का माल है।
जकात अदा होने के लिए फकीर को माल का मालिक बनाना जरूरी है।
अगर किसी निसाब के मालिक आदमी को कोई फकीर कर्ज देने वाला हो और वह जकात की नियत से अपनी तरफ से उसका कर्ज अदा करके उसकी जिम्में से बरी करें तो जकात अदा नहीं होगी क्योंकि इस सिचुएशन में मालिक बनाना नहीं हुआ।
Kin cheezon per zakat wajib hai
- सोना चांदी
- तिजारत का सामान
- बकरी गाय ऊंट
Gold per zakat
सोने और चांदी पर जकात वाजिब है जब वह निसाब को पहुंच जाए।
सोने के निसाब कि मिकदार 20 मिस कॉल है 20 मिस कॉल तकरीबन 85 ग्राम के बराबर होता है।
चांदी के निसाब की मिकदार 200 दिरहम है 200 दिरहम तकरीबन 595 ग्राम के बराबर होता है।
सोने और चांदी में जगा 40 वां हिस्सा निकाली जाती है जकात निकालने वाले को यह अख्तियार है कि वह जकात में सोना या चांदी ही दे या रुपए पैसे में अदा करें या जकात में जरूरत की चीजें दें ये जकात देने वाले पर निर्भर करता है।
Business ke maal per zakat
जब तिजारत का माल सोना और चांदी के निशान तक पहुंच जाए तो सका तो अजीब हो जाती है मुसलमान ताजिर साल के आखिर में अपने पास मौजूद तमाम तिजारत के माल का हिसाब लगाएगा अगर इसकी कीमत बाजार के मुताबिक निसाब तक पहुंच जाए तो उसकी जकात अदा करेगा इसमें भी ज का 40 वां हिस्सा है अगर माली तिजारत निसाब तक ना पहुंचे तो इसमें जकात नहीं है।
हिसाब लगाने में सिर्फ माले तिजारत को जोड़ा जाएगा दुकान की जरूरत में इस्तेमाल की जाने वाली चीजे फर्नीचर वगैरह इसमें शामिल नहीं।
Property aur janwar per zakat
अगर किसी के पास जमीन जायदाद और जानवर हो और उसकी तिजारत की नियत करें तो इन चीजों पर जकात का साल तिजारत शुरू करने के वक्त से शुरू होगा।
वह माल जो उसके मिलकियत हो लेकिन उसको हासिल करना दुश्वार हो जैसे किसी को कर्ज दे और कर्जदार के खिलाफ उसके पास दलील ना हो फिर एक मुद्दत के बाद वह कर्ज मिल जाए
इसी तरह कोई इसका माल हड़प कर ले और उसके खिलाफ कोई सबूत ना हो फिर एक मुद्दत के बाद उसका वह माल वापस मिल जाए
इस तरह अगर किसी का माल गुम हो जाए फिर एक मुद्दत के बाद मिल जाए
इसी तरह किसी का माल जप्त किया जाए फिर कुछ टाइम के बाद वापस कर दिया जाए
इसी तरह अगर कोई अपना माल रेगिस्तान वगैरह में दफन कर दे और जगह भूल जाए फिर एक मुद्दत बाद जगह मालूम हो जाए इन तमाम हालातों में पिछले सालों की जकात अदा करना जरूरी नहीं है यानी इन पिछले सालों में जकात अदा करना उसकी जरूरी नहीं।
Kin logon ko zakat de sakte Hain
Zakat kya hai। Zakat kisko dena chahiye| fakir, miskeen, aamil , gulam, karzdaar,jihad me jane wala mujahid aur musafir ko zakat de sakte hain.
- फकीर को जकात दे सकते हैं ऐसा फकीर जिसके पास कुछ ना हो ऐसे फ़कीर को जकात देना चाहिए चाहे वह सेहतमंद और कमाने वाला हो।
- मिस्कीन जिसके पास कुछ माल ना हो उसको मिस्कीन कहते हैं और उसको सिखा दे सकते हैं
- आमिल जो जकात जमा करने के काम के लिए रखा गया हो उसको जकात कमाल उसकी मेहनत के मुताबिक दिया जाएगा।
- गुलाम ऐसा ऐसा गुलाम जिसके मालिक और उसके दरमियान एक समझौता हो गया हो कितना माल लाकर देने की सूरत में वह आजाद कर दिया जाएगा।
- कर्जदार वह शक्स जिस पर कर्ज हो और वह पर ज्यादा करने के बाद निसाब का मालिक ना रहता हो उसके कर्ज अदा करने के लिए जकात देना फकीर को देना से अफजल है।
- फि सबीलिल्लाह जो लोग अल्लाह के रास्ते में जिहाद के लिए निकले हैं जिसकी वजह से वह फकीर हो या वह को हज के लिए निकले हो वह अपने पास मौजूद सामान खत्म होने की वजह से बैतुल्लाह तक पहुंचने में दिक्कत आ रही हो तो ऐसे लोगों को जकात दिया जा सकता है।
- मुसाफिर जिसके शहर में उसका माल हो लेकिन सफर में माल खत्म हो गया शहर पहुंचने तक के सामान के मुताबिक जकात कमाल उसको दिया जा सकता है।
Kin logon ko zakat nahi diya ja skata
- काफिर को जकात देना जायज नहीं है
- मालदार को जकात देना जायज नहीं है
- बनी हाशिम को जकात देना जायज नहीं है
अपने वालिद दादा और परदादा वगैरह को जकात देना जायज नहीं।
अपनी औलाद और अवलाद की औलाद नीचे तक को जकात देना जायज नहीं है।
अपनी बीवी को जकात देना जायज नहीं है इसी तरह बीवी के लिए अपने शौहर को जकात देना जायज नहीं है इनके अलावा दूसरे रिश्तेदारों को जकात देना अफजल है।
जकात का माल मस्जिद वह मदरसे की कंस्ट्रक्शन रास्ता पुल वगैरा दुरुस्त करने में खर्च करना जायज नहीं है
इसी तरह जकात का माल से मय्यत को कफन देना और मय्यत का कर्ज अदा करना जायज नहीं है
क्योंकि इन तमाम कामों में मालिक बनाना नहीं है और मालिक बनाए बिना जकात अदा नहीं होती
रिश्तेदारों को जकात देना अफजल है फिर पड़ोसियों को देना अफजल है। किसी जरूर बिना किसी जरूरत एक शहर से दूसरे शहर जकात का माल ट्रांसफर करना मकरु है अगर वहां रिश्तेदार मौजूद हो तो मकरु नहीं है या दूसरे शहर वाले अपने शहर वालों से ज्यादा मोहताज हो तो जकात का माल ट्रांसफर करने मकरूह नहीं है अगर किसी जरूरत ने जकात खर्च करने से मुसलमान के लिए ज्यादा फायदा हो तो ट्रांसफर करना मकरू नहीं जैसे खैराती मदरसों में जकात को ट्रांसफर किया जा सकता है।
आज का ये टॉपिक Zakat kya hai। Zakat kisko dena chahiye इसमें हमने जकात के बारे में बहुत से मालूमात जानी अगर आपको ये मालूमात पसंद आयी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे ।
Jazakallah hu khair
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